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Sanjay Raut के आरोपों पर पूर्व CJI चंद्रचूड़ का बड़ा बयान

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने हाल ही में शिव सेना नेता Sanjay Raut द्वारा किए गए आरोपों का जवाब दिया है, जिसमें राउत ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में महा विकास आघाड़ी (MVA) की हार का जिम्मेदार ठहराया था। राउत का आरोप था कि चंद्रचूड़ ने विधायक डिस्क्वालिफिकेशन मामलों पर निर्णय न लेकर राज्य के राजनेताओं से कानून का डर हटा दिया, जिसके कारण राजनीतिक विश्वासघात हुआ और अंततः MVA की हार हुई।

संजय राउत के आरोप

शिव सेना (UBT) के नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि पूर्व CJI डॉ. चंद्रचूड़ ने विधायकों की डिस्क्वालिफिकेशन याचिकाओं पर निर्णय में देरी की, जिससे राजनीतिक विश्वासघात के रास्ते खुले और MVA का पराजय हुआ। उन्होंने कहा, “इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा।”

हालांकि, 20 नवंबर को हुए विधानसभा चुनावों में शिव सेना (UBT) केवल 20 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई, जबकि कांग्रेस और एनसीपी के प्रदर्शन में भी गिरावट आई, जिससे MVA गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा।

पूर्व CJI का कड़ा जवाब

इस आरोप पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक साक्षात्कार में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कर्तव्य है कि वह केवल महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों का निपटारा करे, और यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश का विशेष अधिकार है कि वह कौन से मामले सुने जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया, “क्या कोई एक पार्टी या व्यक्ति यह तय कर सकता है कि सुप्रीम कोर्ट को कौन सा मामला सुनना चाहिए? नहीं, यह अधिकार मुख्य न्यायाधीश का है।”

Sanjay Raut के आरोपों पर पूर्व CJI चंद्रचूड़ का बड़ा बयान

उन्होंने यह भी कहा कि इस वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों पर विचार किया है, जिनमें नौ-न्यायाधीशों, सात-न्यायाधीशों और पांच-न्यायाधीशों की पीठें शामिल थीं। “अगर हम पुराने मामलों को उठाते हैं, तो हमें आलोचना का सामना करना पड़ता है कि हमने विशेष मामले को नहीं लिया,” उन्होंने कहा।

शिव सेना केस पर देरी का कारण

2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिव सेना के विभाजन के बाद, ठाकरे सरकार गिर गई और महायुति सरकार बनी। इस दौरान, ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसमें शिंदे गुट के विधायकों की डिस्क्वालिफिकेशन की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को निर्णय लेने का आदेश दिया।

चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पास सीमित संसाधन और न्यायाधीश हैं और सभी मामलों पर तत्काल निर्णय नहीं लिया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि अगर अदालत उनके एजेंडे के अनुसार काम करे, तो यह स्वतंत्रता का प्रमाण है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जब अदालत ने चुनावी बॉन्ड्स पर निर्णय दिया, तो क्या यह मामला कम महत्वपूर्ण था?

महत्वपूर्ण मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय

पूर्व CJI ने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष कई महत्वपूर्ण मामलों पर फैसला दिया है। इनमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले में दिए गए फैसले, विकलांगता अधिकारों से संबंधित मामलों और नागरिकता कानून की वैधता पर दिए गए फैसले शामिल हैं। उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या ये सभी मामले उतने ही महत्वपूर्ण नहीं थे जितने किसी अन्य मामले की त्वरित सुनवाई की मांग की जाती है।

उन्होंने कहा, “हमने 38 संविधान पीठ के संदर्भों पर निर्णय लिया है। क्या ये मामले किसी विशेष मामले से कम महत्वपूर्ण थे?”

न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर

चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट को बाहरी दबावों से प्रभावित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “हमने इस दौरान किसी तीसरे पक्ष से यह नहीं कहा कि हमें कौन सा मामला सुनना चाहिए।” यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने का उनका सिद्धांत था, और उन्होंने इसे अपनी प्राथमिकता के रूप में रखा।

पूर्व CJI डॉ. चंद्रचूड़ का यह बयान यह स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका को किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त रहकर अपने निर्णय लेने चाहिए। न्यायालय का कार्य केवल संवैधानिक और कानूनी मुद्दों पर निर्णय देना है, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत काम करना।

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